एक वक़त ऐसा था जब हमारे  देश का अभिन्न अंग कश्मीर हर कवी और शायर के लिए  सद्देव ही आकर्षण   का केंद्र रहा था. यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य हमेशा से ही हर किसी को अपने और खीचने  की क्षमता  रखता  था. परन्तु आज स्थिथि कुछ और ही है , आज कश्मीर वो जन्नत नहीं रह गयी है जिसके लिए वो जानी जाती थी. आज कश्मीर अपनी वो नैसर्गिक सौन्दर्यता खो चूका है जो कभी कश्मीर के चप्पे चप्पे  मे बसा करती थी.  यहाँ मेरा नैसर्गिक सौन्दर्यता से मतलब , कश्मीर की प्राकृतिक सौन्दर्यता से नहीं है , कश्मीर की प्राकर्तिक सौन्दर्यता तो आज भी उसी चरम पर है जो पहले हुआ करती थी. आज भी कश्मीर मे पक्षियों की  वही सुरीली आवाजें आती है, आज भी चिनाब की खूबसूरती उतनी ही है जितनी शाहजहाँ ने उसको देख के की थी. आज भी कश्मीर के देवदार के पेड़ों की लम्बाई उतनी ही है जितनी पहले हुआ करती थी. आज भी कश्मीर के झरने , उसी सुन्दरता को समेटे  हुए  नीचे की तरफ गिरते हैं , जैसे पहले झरा करते थे. परन्तु नैसर्गिक सुन्दरता खोने से मेरा अर्थ है आज कश्मीर मे बदती हुई  असुरक्षा   ,अराजकता  और आतंकवाद से है .

                                                     आज घाटी  के जो हाल  है  उन सब से तो हम सब भलीभांति परिचित  हैं .दिन प दिन वहां  के हालात  बद  से बदतर  होते जा  रहे  हैं . सबसे पहला कारन और जो सब से बड़ा कारन रहा है कश्मीर की सुन्दरता मे दाग लगाने मे ,वो है आतंकवाद , आज कश्मीर ही नहीं सारी दुनिया इस आतंकवाद रुपी दानव  से लड़ने  मे जुटी  हुई है .आज आतंकवाद ने कश्मीर की ताज़ी आबो - हवा  को अपने बारूद  की गंध से भर दिया है. आज कश्मीर के गुलों मे भी वो ताकत नहीं रही है की इस बारूदी गंध को अपने प्रेम रुपी गंध से ढक दे .कभी फूलों और वृक्षों से सजी ये घाटी आज हर जगह लगे आर्मी और पुलिस वालों के बंकरो से सजी हुई दिखाई पड़ती है. बन्दूको की नाले इस प्रकार मूह फाड़े खड़ी रहती है की मनो कितने वर्षो से भोजन न मिला हो . राजनेता , हमेशा से ही अपने स्वार्थ  के कारन कश्मीर मुद्दे पर दोमुखी रहे हैं .आज उनकी चुपी और ढुलमुल रवये  के ही कारन दुनिया मे जन्नत कहलाने वाला हमारा कश्मीर जहनुम के नजदीक पहूंचता जा रहा है . इसी सरकार की कमजोर नीतियों के कारन आज घाटी मे आए दिन कोई न कोई जन समूह  पत्थरबाज़ी , नारेबाजी आदि करता हुआ दिख रहा है. हर दिन अख़बारों मे , न्यूज़ चैनलो  में हम कश्मीर मे बदती हुई अराजकता के बारे मे पद रहे हैं. आज फलाना जगह मे एक जनसमूह ने आगजनी करी तो , आज कश्मीर के इस हिस्से  में   क्रोस फैरिंग  हुई . हर दिन इस प्रकार की खबरों  से न्यूज़ चैनल   और अख़बार के पृष्ठ भरे रहते हैं. सरकार हर बार कोई नई नीति निकलती है , और हर बार वो नई नीति पुरानी नीतियों की ही तरह छोटे से ही अन्तराल  मे अपना  दम  तोड़  देती  हैं. 

                                  जिस प्रकार घाटी मे आजकल हर दिन और लगभग हर जगह कुछ उपद्रवी जन समूह सेना तथा पुलिसकर्मियों पर पत्थरबाजी बोतलबम फेंक   रही है , उसके जवाब मे  हमारे जवान के उठाये हुए क़दमों को मानवाधिकार  अपना गला फाड़ फाड़ कर  दुष्प्रचारित करने मे लगा रहता  है. हमारे जवानों  को संयम  से रहने को कहा जाता है ,चाहे इस सयं के नाम पर उपद्रवी उनकी ज़िन्दगी ही क्यों न  मिटा दे .क्या हमारे  मानवाधिकार की आंखें सिर्फ सादे कपडे वालो के लिए ही है , ना की सेना और पोलिसे के जवानों के लिए. फिर चाहे सादे कपडे पहन कर हम किसी भी रूप मे भारत के कानून   की तौहीन करे , पर हम सादे कपडे वालो के लिए तो मानवाधिकार है , क्या सेना के जवानों का अपना कोई जीवन नहीं होता है , परन्तु कुछ भी हो ,चाहे आम जनसमूह हिंसक हो जाये अथवा हमारे जवानों को जनसमूह को रोकने के लिए हिंसक होना पड़े , दोनों रूप मे नुक्सान हमारे देश और उस  राज्य  का ही होता है जहाँ ये खुनी तांडव होता है. कुछ आंकड़ो के मुताबिक इस साल सिर्फ ३  महीने मे ही कश्मीर मे  १० से ज्यादा ऐसी हिंसक वारदाते हुई जिसमे  सेना और आम जनता  आमने - सामने  थी , और इन  हिंसक वारदातों ने  ५० से अधिक लोगो की जाने ले ली. क्या इसी दिन के लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना खून बहाया था, की आगे चल कर हम अपने ही देश के अन्दर  खून की होलियाँ  खेले ..

      कश्मीर मे होने  वाले चुनाव  भी बस एक छलावा ,मात्र  है , सबसे ज्यादा चोकने वाले तथ्य ये है की कश्मीर का बाशिंदा चुनाव कश्मीर समस्या  के हल  के लिए नहीं चाहता  अपितु सिर्फ बिजली , पानी सडक इत्यादि क लिए. वहा के एक बड़े समुदाय का मानना है की कश्मीर मे हर जगा बस एक ही चीज़ हो -इस्लाम .और कश्मीरी पंडितो का वहां से देश निकला भी इसी सोच की एक कड़ी है. वहां के लोग कश्मीरियत का जो दम भरते है वो तो इसी से झूठा साबित हो जाता है की जब ,वहां के अभिन्न अंग रहे कश्मीरी पंडितो को निकला गया था , और उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक  धरोहर  को नेस्तनाबूद  करा गया था. क्यों वहा के जगहों  के नाम हिंदी  से हटा  के उर्दू  मे रख  दिए  गये . ये सब होने  के बावजूद  भी क्यों सरकार चुप रही . क्या ये सारे कृत्य देश की अखंडता और सौहार्द को छीन - भिन्न    नहीं करते हैं. परंतू हमारी  सरकार को तो दुनिया मे महा  शक्ति  बनना  है फिर चाए उसका  अपने ही देश मे कोई बस न हो .

      अगर जल्द ही हमारे देश के भावी i  नेता और जनता इस समस्या को समय रहते नहीं चेते तो वो दिन दूर नहीं जब हमारा प्यारा और अभिन्न कश्मीर टुकडो मे बात कर हमारे इतिहास के पन्नो मे कहीं खो जायेगा .


 

 


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