प्रोटीन मनुष्य के दैनिक भोजन का एक आवश्यक अंग है। प्रोटीन अमीनो एसिड के समूह से मिल कर बनती है। भोजन के पाचन के समय प्रोटीन अमीनो एसिड में परिवर्तित हो जाते है। अमीनो एसिड मुख्यत: 21 प्रकार के होते है। इनमे से 9 अमीनो एसिड अति आवश्यक अमीनो एसिड की श्रेणी में आते है। ये 9 अमीनो एसिड हमारा शरीर स्वयं नहीं बना सकता इसलिए हमारे भोजन में इन 9 अमीनो एसिड का होना आवश्यक है। अमीनो एसिड की दूसरी श्रेणी में वह अमीनो एसिड आते है जिन्हें हमारा शरीर स्वयं निर्मित कर सकता है परन्तु फिर भी हमारे भोजन में ये कुछ मात्रा में होने चाहिए और तीसरी श्रेणी में वह अमीनो एसिड आते है जो हमें बाहर से भोजन द्वारा लेने की आवश्यकता नहीं होती हमारा शरीर इन्हें भरपूर मात्रा में निर्मित कर सकता है।

एक ग्राम प्रोटीन से हमें 4 कैलोरी उर्जा प्राप्त होती है। परन्तु हमारा शरीर उर्जा के बजाय कार्बोहाईड्रेट्स व वसा का उपयोग अधिक करता है। शरीर की कोशिकाओ और उत्तको का प्रोटीन एक मुख्य भाग है। मासपेशियों के निर्माण और रख रखाव की क्रिया में प्रोटीन का मुख्य योगदान है। विभिन्न एंजाइम और हार्मोन का अभिन्न अंग है। शरीर प्रोटीन का उपयोग उर्जा के लिए तभी करता है जब वसा और कार्बोहाईड्रेट्स उपलब्ध नहीं होते।

एक व्यसक व्यक्ति के लिए प्रतिदिन 45 ग्राम प्रोटीन भोजन में होनी आवश्यक है परन्तु गर्भवती, प्रसूता स्त्री, खिलाड़ी एवं अधिक शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्ति के भोजन में प्रोटीन की मात्रा अधिक होनी चाहिए।

प्रोटीन के स्त्रोत में अमीनो एसिड की उपलब्धता के आधार पर प्रोटीन को मुख्यत: दो भागों में विभाजित किया जाता है।

सम्पूर्ण प्रोटीन

मनुष्य, पशु व पक्षियों से प्राप्त प्रोटीन को सम्पूर्ण प्रोटीन की श्रेणी में रखा जाता है। माँ का दूध, पशुओ में गाय, भैंस, बकरी इत्यादि का दूध, अंडा मांस, मछली से प्राप्त प्रोटीन सम्पूर्ण प्रोटीन होती है। इस प्रकार की प्रोटीन में सभी अति आवश्यक अमीनो एसिड का मिश्रण होता है।

अपूर्ण प्रोटीन

वनस्पति से प्राप्त प्रोटीन इस श्रेणी में आते है। इस प्रकार के प्रोटीन में एक या एक से अधिक अति आवश्यक अमीनो एसिड की कमी पाई जाती है। इस श्रेणी में आने वाले प्रोटीन के स्त्रोत इस प्रकार है। सभी प्रकार की दलहन (दालें), काष्ठज ड्राईफ्रूट्स, अनाज (गेहूं, चावल, बाजरा इत्यादि)।

यदि हम अलग-2 स्त्रोत से प्राप्त अपूर्ण प्रोटीन को एक साथ भोजन में शामिल करते है तो ये अधिक लाभ पहुंचाती है जैसे की अनाज के साथ यदि ड्राईफ्रूट्स मिला कर भोजन किया जाये तो दोनों से मिलने वाली अपूर्ण प्रोटीन भी सम्पूर्ण हो जाती है क्योकि दोनों के अमीनो एसिड मिलने से भोजन में सभी आवश्यक अमीनो एसिड मिलने से भोजन में सभी आवश्यक अमीनो एसिड पूरे हो जाते है।

इसी प्रकार हम खीर, दूध से तैयार दलिया और खिचड़ी जैसे पकवान बना कर अपूर्ण प्रोटीन स्त्रोत की गुणवत्ता बढ़ा कर लाभ उठा सकते है। शाकाहारी भोजन में दूध से प्राप्त प्रोटीन को सर्वोतम माना जाता है। गाये के दूध से हमें 3.5 प्रतिशत प्रोटीन प्राप्त होता है और सोयाबीन से हमें 40 प्रतिशत प्रोटीन प्राप्त होता है। दूध में कम प्रोटीन होने पर भी दूध की प्रोटीन अधिक लाभदायक है क्योंकि दूध से प्राप्त प्रोटीन में सभी अति आवश्यक अमीनो एसिड सही मात्रा में है परन्तु सोयाबीन में 40 प्रतिशत प्रोटीन होने पर भी सोयाबीन दूध जितनी लाभदायक नहीं है क्योंकि सोयाबीन में कुछ अति आवश्यक अमीनो एसिड नहीं पाए जाते।

प्रोटीन की कमी से छोटे बच्चो में मेरेस्मस और क्वाशियोरकर नामक बिमारी हो सकती है, जिसमे बच्चे बेहद पतले हो जाते है। इसलिए हमे अपने शरीर की जरुरत के अनुसार प्रोटीन अवश्य लेनी चाहिए। परन्तु अति हर चीज की बुरी है। जरुरत से अधिक मात्रा में प्रोटीन लेने से खून में यूरिक एसिड की मात्रा बाद सकती है जो कि 
गठिया का मुख्य कारण है जिससे हमारे जोड़ो में दर्द होता है।

गुर्दों से सबंधित रोग होने पर भी प्रोटीन की मात्रा नियंत्रित करना आवश्यक है। परन्तु ऐसा बिलकुल नहीं है कि प्रोटीन से गठिया या गुर्दों का रोग होता है। हमें केवल ये ध्यान रखना है कि इन रोगों में हम प्रोटीन का सेवन चिकित्सक या डायटीशियन की सलाह से करे। परन्तु अन्य सभी अवस्थायो में हमे ये सुनिश्चित करना चाहिए की हम अपने शरीर की जरुरत के अनुसार प्रोटीन अवश्य ग्रहण करे।


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