“हिन्दी-चीनी भाई-भाई”... और घुसपैठ ज़ारी
हिन्दी-चीनी भाई-भाई का राग अलापते हुए पीठ पीछे वार करने वाला चीन अपनी करतूतों से आज भी बाज नहीं आ रहा। इन दिनों जहां एक ओर वह बयान जारी करता है कि उसकी ओर से सीमा में कोई घुसपैठ नहीं होगी और विवादों को बातचीत के जरिये सुलझा दिया जाएगा, दूसरी ओर उसके सैनिक भारतीय सीमा में कभी भी घुसपैठ कर जाते हैं। चीन के नेता और दिल्ली स्थित उसके दूतावास के अधिकारी मीडिया में भले ही लीपापोती करते फिरें, लेकिन उसकी दादागिरी अब किसी से भी छिपी नहीं रह गई है। चीन से लगी भारत की कोई भी सीमा आज तनाव से मुक्त नहीं है।
चीनी सैनिकों की बार-बार चलती घुसपैठ से भारतीय सैनिकों को भी जवाबी कार्रवाई के लिए मजबूर होना पड़ता है। यह अघोषित युद्ध सी स्थिति भारत-चीन सीमा पर कमोबेश सारा साल बनी रहती है। दोनों ओर से गोलीबारी होना भी यहां आम बात है। यहां तक कि चीनी सैनिक चहल-कदमी करते हुए भारतीय सीमा में मौजूद गांवों तक आसानी से पहुंच जाते हैं। इन दिनों खासकर जम्मू-कश्मीर स्थित लेह-लद्धाख सीमा के कई गांवों के लोग दहशत के साये में जीने को मजबूर हैं। इसी इलाके के न्यूमां ब्लॉक के चुमुर में चट्टानों पर पेंट से ‘चीन’ लिखने के मामले भी सामने आए हैं। यहां पिछले चार महीनों से चीनी सैनिक रैकी करते हुए नज़र आ रहे हैं। वे सीमा के इस पार आकर गांव वालों को कहते हैं कि यह हमारा इलाका है, खाली करो। नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर लेकिन दुनिया से बिल्कुल अलग-थलग पड़े इस क्षेत्र में घटने वाली कई घटनाएं तो सामने ही नहीं आने दी जातीं।
ऐसे करीब एक दर्जन स्थान हैं जहां चीन हस्तक्षेप कर रहा है लेकिन भारतीय अधिकारी इसे बेहद हल्के से लेते हैं। लेह जिला में डैमजौक एक बड़ा क्षेत्र है जो न्यूमा और दुरबुक दो ब्लॉकों में बंटा है। न्यूमा के चुमुर सैक्टर में माउंट ग्या की पहाड़ियों, जिसे हम फेयर प्रिंसेस ऑफ स्नो के नाम से भी जानते हैं, पर चीनी सैनिकों ने ‘चीन’ लिख दिया था। इससे आगे का इलाका छुछुल पड़ता है। वहां भी चीनी सैनिक अक्सर घुस आते हैं। वे कभी रात में आते हैं तो कभी दिन में। यही वह जगह से जहां से पारछू नदी भी निकलती है, जो हिमाचल में सतलुज बन जाती है। पारछू नदी की बाढ़ ने पिछले सात सालों से हिमाचल को संकट में डाल रखा है और यहां की कई जल-विद्युत परियोजनाएं भी इससे बुरी तरह से प्रभावित हुईं हैं। भारत सरकार पारछू संकट का समाधान भी आज तक नहीं निकास सकी है। कहा तो यहां तक जाता है कि चीन पारछू नदी पर बनी एक बड़ी झील में पानी रोककर और उसे बिना चेतावनी दिए अचानक छोड़ता है. जिससे सतलुज नदी में बाढ़ आ जाती है और इससे भारी तबाही मचती है।
चीन की सैनिक और कूटनीतिक गतिविधियों पर अगर गौर करें तो वह पहले भारत के किसी क्षेत्र को लेकर विवाद खड़ा करता है और धीरे-धीरे घुसपैठ शुरू करता है। इन दिनों भी चीन ऐसा ही कर रहा है। दूसरी और भारत, चीन के साथ टकराव को टालने का हर संभव प्रयास करता नजर आ रहा है। इसी क्रम में भारत की तीनों सेनाओं के अधिकारी इन दिनों चीन के दौरे पर हैं, जहां वे चीन के कब्जे वाले तिब्बत में भी भारत-चीन सीमा क्षेत्र का दौरा करेंगे। इस दौरे से सकातात्मक समाधान और विवाद हल होने की उम्मीद तो है, लेकिन बार-बार धोखा दे चुके चीन पर विश्वास कर पाना भी काफी मुश्किल है। जाहिर है दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है। ऐसे में हिन्दी चीनी भाई-भाई के नारे का अब आगे क्या हश्र होगा, यह तो वक्त के गर्भ में छिपा है। फिर भी आशा तो रखनी ही चाहिए कि परिणाम सकारात्मक होंगे। आमीन।
सुरेन्द्र पॉल
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- 14 years ago.
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