चिपको आन्दोलन चिपको आन्दोलन - पर्यावरण की सुरक्षा का आन्दोलन वन- वासियों की जीवन रक्षा का आन्दोलन जिसमें पेड़ों से चिपकना था और कटते हुए पेड़ के साथ स्वयं काटना था || लेकिन आज चिपको आन्दोलन नए एवं आकर्षक रूप में सामने आया लोगों ने इच्छानुसार उसे भुनाया | चिपको !… चिपको!… चिपको!… चाहे पेड़ से चिपको या कुर्सी से दोनों तो एक ही हैं , ईश्वर की मर्जी से यही प्रगतिशील विचारधारा है चिपकने वालों की सरकार है यह विचार हमारा है | लेकिन जहाँ तक मेरी नज़र है दोनों में बहुत अंतर है जो समाज के लिए चिपके वह ‘इन्सान’ है जो कुर्सी के लिए चिपके वह ’बईमान’ है जो किसी से भी चिपके वह ‘हैवान ‘है | वर्तमान में चिपको आन्दोलन बहुत लोकप्रिय हुआ जंगल से निकला ,पूरे देश में सक्रिय हुआ नेता—अधिकारी —कर्मचारी— सभी कुर्सी के हुए पुजारी कुर्सी पर बैठकर कुछ भी करते रहिये अपनी अतृप्त भूख और जेब दोनों भरते रहिये कोई कुछ नहीं बोलेगा आंकड़े तैयार रखिये ‘साहब’के बोलने से पहले ,उनके मुहँ पर फेंकिये | अफ़सोस!! आज आदमी नहीं आंकड़े बोलते हें जो सुदृढ़ लोकतंत्र की पोल खोलते हें | हम भी चिपकाना चाहते हैं, कुर्सी से लेकिन रह गए ————रह गए चिपकने के तत्त्व ‘मक्खन’ की कमी से मित्रों ,सत्य पर झूठ की मोटी लेप लगाओ साहब और कुर्सी से चिपक कर ‘चिपको आन्दोलन’ को सफल बनाओ’ | -ऋषि कान्त उपाध्याय

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