आपको कहानी का नाम पढ़कर लगा होगा कि शायद ये मेरी कहानी है | यह कहानी लिख तो मैं रही हूँ लेकिन शब्द किसी और के हैं | यह कहानी मेरे दोस्त की अपनी आपबीती है कोई काल्पनिक कथा नहीं|तो सुनिए उसकी कहानी उसी की जुबानी -

मेरा नाम धीरज पांडे है मेरा जन्म एक प्रतिष्ठित मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ | अन्य परिवारों की तरह हमारे घर की आर्थिक स्थिति भी थोडी खराब थी वहीँ भाग्य भी हमारा साथ नहीं दे रहा था | घर के हालातों को सुधारने का जज्बा मुझमे बचपन से ही था मैं चाहता था कि घर में किसी को अपनी इच्छाएं दबानी न पड़े और कभी मम्मी-पापा को कोई भी चीज़ खरीदने के लिए सोचना न पड़े|

मेरे पापा टीचर हैं और मेरे बड़े भैया दुकान चलाते हैं| मैं अपने 6 भाई-बहनों में सबसे छोटा हूँ हालाँकि इसके कुछ फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी | मेरे शरारती स्वभाव की वजह से मुझे पढाई भी शरारत जैसी आसान लगती | 13-14 साल का होते-होते मैं भैया के साथ दुकान भी सँभालने लगा और यहीं से घर कि जिम्मेदारियां मुझ पर आने लगीं| मुझसे बड़ा एक भाई M.B.A. कर रहा था इसलिए मेरे कॉलेज शुरू होते ही मुझ पर कुछ काम करने के लिए अनचाहा दबाव बढ़ने लगा फलस्वरूप अगले ही साल मैंने एक कंपनी में काम करना शुरू किया | ग्रेजुएशन तो मेरा जैसे-तैसे पूरा हुआ |

आगे मैंने पत्राचार से M.B.A. करना चाहा लेकिन काम के कारण नाकामियाब रहा | दो साल काम करने के बाद मैंने कंपनी बदल ली लेकिन मैं जहाँ भी काम करता सब मुझे,मेरे काम,मेरे व्यवहार को पसंद करते, मैंने काफी लोगों से पहचान बना ली थी जिससे मेरा आत्मविश्वास और आत्मसम्मान भी बढ़ता जा रहा था और यही आत्मविश्वास मुझे गलत रास्ते पर ले गया |

एक दिन मैं अपने एक दोस्त का मैच फिक्सिंग में साथ दे रहा था वो दिन तो बीत गया लेकिन धीरे-धीरे मेरा भी मन करता कि मैं भी इसके जरिये जल्दी पैसे कमाऊं और आख़िरकार मैंने खेलना शुरू किया अपने दोस्त के जरिये वो कहते हैं ना कि हर बुरी चीज़ लुभावनी होती है |

वही हुआ और लगभग हर रोज मैं खेलने लगा और मैं जीतता भी गया | कमाए हुए हजारों रूपये मैंने घरवालों को दिए लेकिन उन्होंने कभी नहीं पूछा कि ये कहाँ से आये| एक दिन किस्मत ने करवट ली और मैं बड़ी रकम हार गया और ये सिक्का ऐसा पलटा कि मैं लगातार हारता चला गया |हर बार बस इसी आस में खेलता कि पिछला हिसाब बराबर कर लूँगा लेकिन हिसाब बढ़ता ही गया मैं तब तक हारा जब तक मैं चारों तरफ से घिर नहीं गया |जितना मैंने कमाया था उतना ही क़र्ज़ मेरे ऊपर आ गया |

दूसरी तरफ मैं अपनी नौकरी के साथ खिलवाड़ कर रहा था जिससे मेरा रिकार्ड खराब होने लगा |मेरे हालात और मानसिक स्थिति इतनी खराब होने लगी कि मेरा अपने आप से विश्वास उठने लगा |मुझे ऐसा लगने लगा कि मैं कुछ नहीं कर सकता ना कभी कर पाऊंगा |

मेरे बिगड़ते हालातों को देखते हुए मेरे दोस्तों ने मेरी बहुत मदद की सबसे पहले मुझे संभाला , कर्ज़दारों के रूपये लौटाए और मुझे आगे से खेलने के लिए मना किया |

आज भी जब मैच आता है तो मन करता है फिर से अमीर होने का लेकिन अमीरी के बाद की वो गरीबी वो लाचारगी मुझे डरा देती है|

तो दोस्तों ये थी मेरी नाकामयाबी की कहानी और एक सबक आप सभी के लिए ....


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