बचपन -- एक आना जाना
दुनिया के रस को न जाना न पहचाना
कभी खिलना कभी मुरझाना
सावन से था मिलना रोजाना

सिमटी सी दुनिया सारी
खुशिया थी मुट्ठी में हमारी
दुनिया-दारी बस यारी हमारी
दोस्त है तो दुनिया प्यारी

चंदा था मामा हमारा
तारों को न हमने जाना
सपनो में सजा संसार सारा
लिखना-पढना कारोबार हमारा

छोटी हार बड़ी जीत
नई थी हर एक रीत
सुनते थे मम्मी की डांट
रोते थे दूसरो के पास

रेत के टीलों में हाथ मिलाना
मिटटी से सारा संसार सजाना
भेल मिलके पिकनिक पे जाना
पापा की गाडी का एक राउंड लगाना

थाकन से चूर... मम्मी से पैर दबवाना
दूरदर्शान के सारे गाने गाना
बिचडे तो नम आँखे हमारी
जूडे तो रंगों से भी रंगीन दुनिया सारी

बीता ये बचपन ऐसे
आँख लगकर खुली हो जैसे

बचपन ले चला विदा हमसे
हसीन रहेगी वो यादें जुडी उससे
ज़िन्दगी के बड़प्पन में इतना घुल न जाना
गुदगुदाते उस भोलेपन को भूल न जाना


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