Barish Ki Bunde
बारिश की वो बूंदे,
उनका यू धरती पर गिरना,
और गिरकर यू उसके साथ चलना
रात के अंधेरे में ,
चाँद की रौशनी में,
बिजली के तारो में उनका यू चमकना.
छु जाता है मेरे मन को
मन में बसे उस कोने को,
जिसमे रहता है कोई एक सपना,
कहीं कांच सा,
कहीं ओस सा
कही किसी सितार से निकले साज़ सा
यू रात के अँधेरे में,
झर-झर कर पत्तो से कान में कुछ कहना,
यु बड़ी इमारतों से लगकर,
उन्हें छूकर...उन्हें अपना एहसास दिलाना
इस तरह से उनका यू साथ मिलकर बरसना,
कहता है कुछ ख़ास है इस रात में,
गिरती है ये एक सी
टकराती है ये अनेको से
और देती है ये स्वर अनगिनत से.
चुपके से एक बूँद आती है,
कही दूर से इठलाती, टकराती, डोलती हुई,
और कहती है मुझसे ....तुम क्यों आछुती हो मुझसे,
आओ चलो चले कही दूर पे,
समझ नहीं आता कहाँ से आती है ये बूंदे,
एक सी ....बस बरसती रहती है बस बरसती,
हवा का एक झोंका डगमगा देता है उन्हें
पर फिर बरसती है एक सी.
Regards
Ruchika
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