पंडित भीमसेन जोशी , एक स्वरभास्कर | उनका नाम ही आसमान के सूरज जो पूर्ण रूप से अपनी किरणे बिखेर रहा है जैसा चारों दिशाओं में अपने गायन कि जादू बिखेरता हुआ सामान्यजन को शास्त्रीय संगीत से मंत्रमुग्ध करता है |

सामान्यजन को शास्त्रीय संगीत से परिचित करने वालें भीमसेन जोशी एकमेव शास्त्रीय गायक है | आज घर घर में शास्त्रीय संगीत को प्रतिष्ठा तो दिही पर सामान्य से असामान्य इन्सान को भी उन्होंने अपने संगीत कि जादूसे भावविभोर कर दिया | शास्त्रीय संगीत का जिसे ज्ञान नही उन श्रोताओंको भी खीचं लानेकी ताकद उनमें थी | भारी और धीरगंभीर आवाज , आरंभ में ही श्रोतओंको मोहित करने कि कुशलता , और आगे आगे मैफिल पर चढ़ने वाला रंग यह उनकी विशेषता थी | जब वह अभंग गाते थे तो गरीब सेभी गरीब श्रोताको मानो भगवान का साक्षात्कार होता था | वे किराना घरानेके गायक थे ,और उनके संगीत में किरानाघरानेकी झलक नजर आती थी |

उनके लिए शास्त्रीय संगीत परब्रम्ह था | पर फिर भी उन्होंने संगीत के अन्य प्रकार भी अपनाये | उनोहें अभंग , सिनेमा संगीत , भक्तिगीत और तो और '' मिले सुर मेरा तुम्हारा " जैसे विग्यापनोंमें भी अपना आवाज देकर उसे भी लोकप्रिय बनाया |

पंडित भीमसेन जोशी का जन्म ४ फरवरी ,१९२२ में कर्नाटक के हुबली के पास गदग गाव में हुआ | उनके माताजी का नाम रमाबाई और पिताजी का नाम गुरुराज था | गुरुराज ज्योतिषी और संस्कृत के पंडित थे |

पंडितजी का कलाप्रेम बचपन में ही सामने आया | बचपन से ही ताशे ढोल या अन्य सुर उनके कनोंमें पड़ते तो उनकी जिज्ञासा जागृत होती और उसे जाननेकी अनिवार इच्छा उनके मन में होती थी | उस समय अब्दुल करीम खाँ कि गायकी बहुत प्रसिद्ध थी | उनके रेकार्ड्स पंडित जी बहुत बार सुनते थे | इस गान साधना के लिए उन्होंने घर से पलायन किया और मुंबई आगये | अच्छे गुरु कि उनको तलाश थी | साल १९३५ -३६ में उन्होंने सवाई गंधर्व का शिष्यत्व स्वीकार किया | इस काल में पंडित जी ने अपने गायकिको आकर दिया | उनकी कड़ी महेनत को देखकर सवाई गंधर्व जी ने उनके गुरुत्व का स्वीकार किया |

उनके संगीत प्रवास कि शुरुवात १९४६ में पुणे में पहली स्वतंत्र महफ़िल से होगई | उसके बाद उन्होंने मुड़के नही देखा | ललत, तोड़ी , कल्यान , मुलतानी , दरबारी , शुद्धकल्यान , मल्हार, पुरिया , कलाश्री , मारुबिहाग ,कोमल रिषभ आसावरी , छायानट जैसे किरानाघरानेके स्वरोंकी बरसात होती रही | इन स्वरोंको गाना इस स्वरभास्कर को ही शोभांकित था |

महफिले सजाती रही | इसी दौरान पंडित जी को अनेकों पुरस्करोंसे सम्मानित किया गया | शब्द और शब्दोंके पार उनका अर्थ नाद्ब्रम्ह से गानेवाले इस अनोखे कलाकार कि गायकी हर जनसामान्य के ह्रदय में समा गई है |

भारत सरकार कि तरफ से दिया जानेवाला सर्वोतम पुरस्कार '' भारतरत्न '' से पंडित भीमसेन जोशी जी को नवासा गया|


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