मुड़ो नहीं  बढ़े चलो

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मुड़ो नहीं  बढ़े चलो

थको नहीं चढ़े चलो

नदी घाटी दुर्गम पहाड़

सुनो सिंह की दहाड़ |

मंजिल आवाज दे रही

सुरों  को साज दे रही

फिर क्यों ?निडर तू डर रहा

लम्बी उसांस भर रहा   ||

आंधी  तूफ़ान हो बवंडर

पथ में आये चाहे समुन्दर

न रोक सकती  हैं कभी

उठती लहर जो तेरे  अन्दर ||

कदम ताल करता चला-चल

कर्म पथ से भाग्य को छल

आज परीक्षा की  घडी है

सबकी  आशाएं बड़ी  है

लक्ष्य- भेद कर आयेगा  तू

सपना  सच  कर  दिखाएगा तू ||

                  ऋषि कान्त  उपाध्याय


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