A Day in the Life of India

अमृत गंगा -यमुना का पानी

कालिख-काई से भरी हुई है

अखंड भारत की गली-गली

अपराधों से हरी हुई है |

 

कहीं दहेज़ की चिता जल रही

पढ़े -लिखे के हाथ कटोरा है

कहीं भूख से टूटती देह पर

परिवार के बोझ का बोरा है|

 

मज़बूरी का दामन पकड़े

मासूमो का बचपन बीता

रामू सड़क पर भीख मांगता

पेट बांध कर सोती सीता |

 

अतुल्य भारत में अतिथि देव

भगवान की शोभा पाते है

अविश्वास की ऐसी धूल उड़ी

जो आने में सकुचाते है|

 

मुखौटा ओढ़े सब बैठे है

शौक या मजबूरी में

अपने दिल से पूछ जमूरे

किस इच्छा की पूरी में |

 

जो दिखता है सो बिकता है

बिक गई 'शीला के जवानी'

सीधी 'मुन्नी बदनाम' हो गई

घर-घर की यहीं कहानी |

 

गाँव-देश बाज़ार हो गया

जहाँ होता सबका सौदा

संबंधों का जड़ उखड रहा

पलता स्वार्थ का पौधा |

 

संस्कार शास्त्र पुराण की बातें

लगाती अब बे-मानी

यहीं है असली भारत की

दुखदायी अनकही कहानी

                            ऋषि कान्त उपाध्याय

 


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